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________________ २२] [जवाहर-किरणावली भले ही बन सकता है, लाभ तो उससे कुछ भी दिखाई नहीं देता। बालक को जब सिला कपड़ा पहिनाया जाता है तो वह रोने लगता है। वह रोकर मानो कहता है कि मुझे इस बन्धन में मत डालो। मगर कौन बालकों की पुकार सुनता है! जरा विचार कीजिए कि आप लोग अपने बालकों को नाना प्रकार के आभूषण और गोटा-किनारी के कपड़े पहिनाये बिना संतोष नहीं मानते, मगर अंगरेजों के कितने लड़कों को आपने गहने पहिने देखा है ? आप बालकों को बचपन ले ही ऐसी विकारयुक्त रुचि का बना देते हैं कि आगे चलकर उनकी रुचि का सुधरना कठिन हो जाता है । बड़े होने पर कदाचित् उन्हें गहने न मिले तो वे दुःख का अनुभव करते हैं । उनकी दृष्टि ही विकृत हो जाती है। उनका जीवन दुःखमय बन जाता है। माता-पिता को तो चाहिए कि वे बालक को सादगी और स्वच्छता का सबक सिखावें, जिससे उनका अगला जीवन सुख और संतोष के साथ व्यतीत हो सके। बहुत से लोग लड़कों पर अच्छा भाव रखते हैं परन्तु लड़कियाँ उन्हें आफत की पुड़ियाँ मालूम होती हैं। लड़का उत्पन्न होने पर वे प्रसन्न होते हैं और लड़की के जन्म पर मातम-सा मनाने लगते हैं-उदास हो जाते हैं । फिर उसके पालन-पोषण में भी ऐसी लापरवाही की जाती है कि लड़की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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