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[ जवाहर - किरणावली
धर्म भी कह सकते हे। और परमेश्वर भी कह सकते हो। 'सचं भगवो' (सत्य भगवान् ) भी कह सकते हो। उस सत्य की सीप में अपने मन, वचन, काय को डाल दोगे तो ये मोती बन जाएँगे । ये ऐसे मोती बनेंगे जो राजा-महाराजाओं के आदर के ही पात्र नहीं बनेंगे वरन् देवता भी इनकी पूजा करेंगे । देवा वितं नमसंति जस्स धम्मे सथा मणो ।
अर्थात् जिसके मन में सदैव धर्म का वास होता है उसे देव भी नमस्कार करते हैं ।
इस प्रकार कांक्षाहीन होकर अगर आप भगवान् की भक्ति करेंगे तो देवता भी आपको नमस्कार करेंगे । विनयचन्द्रजी कहते हैं
श्रागम - साख सुणी छे एहवी,
जो जिनसेवक थाय हो सुभागी । तेहमी आशा पूरे देवता,
चौंसठ इन्द्रादिक साथ हो सुभागी ॥ श्रीशान्ति जिनेश्वर सायब सोलवां,
शान्तिदायक तुम नाम हो सुभागी । तन मन वचन हो शुध कर ध्यावतां,
पूरे सगली हाम हो सुभागी || श्री ० || यह आगम की साक्षी है कि जो तन, मन और धन का अहंकार त्याग कर उन्हें परमात्मा को समर्पित कर देता है और फिर भी निष्काम बना रहता है, उसकी आशा देवता
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