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________________ बीकानेर के व्याख्यान 1 [ २६३ की अवस्था भी पकड़ी जा सकती है। आचार्य कहते हैंमेरे शब्द भले ही कौड़ी के बराबर हों लेकिन स्तुति में लग जाने से मोती बन गये हैं । भगवान् की वचन और काय हम लोगों को पुण्य के उदय से मन, की प्राप्ति हुई है । वह पुराय तीव्र था, इस कारण आर्य क्षेत्र मिला, मनुष्यगति मिली' और दूसरी सब उत्तम सामग्री मिली। वैसे देखा जाय तो इन सब की कोई कीमत नहीं है, फिर भी यह महान दुर्लभ वस्तुएँ हैं । लोगों का दृष्टिकोण इतना अर्थप्रधान बन गया है कि अर्थ के सामने किसी दूसरी चीज़ की कोई कीमत ही नहीं है ! महत्त्व उसी का समझा जाता है जिसके बदले में पैसा चुकाना पड़ता है । यह एकदम भौतिक दृष्टिकोण अपने आप को भुलावे में डालने वाला है । धनवान् की कोई कीमत नहीं, जो कुछ है धन की ही कीमत है ! धन के सामने जीवन तुच्छ है, आत्मा नाचीज़ है ! यह दृष्टिकोण इतना व्यापक हो गया है और इसका असर लोगों पर इतना अधिक हो चुका है कि इससे भिन्न दूसरी बात सोचना भी उनके लिए कठिन हो गया है । मगर मनुष्य अपनी मनुष्यता को भूल जाय, यह कितने संताप की बात है ! आर्थिक मूल्य न चुकाने पर भी देखना चाहिए कि वस्तु का महत्त्व कितना है ? इस दृष्टि से अपने वचन और काय की कीमत समझनी चाहिए । इनके लिए हमें पैसा नहीं देना पड़ा है, यह सही है, मगर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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