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[ जवाहर-किरणावली
तेज़ लगी कि व्याकुल होने लगा। इसी समय सामने की ओर से हिरनों का एक झुण्ड आ निकला। उसने झपट कर उस झुण्ड में से एक बच्चे की टांग पकड़ ली । भुण्ड के और हिरन तो भाग गये मगर उस बच्चे की माँ वहीं ठिठक गई और अपने बच्चे को दूसरे के हाथ में पड़ा देख कर आँसू बहाने लगी। अपने बालक के लिए उसका दिल फटने लगा! ___ बच्चे को लेकर सुबुकुतगीन एक पेड़ के नीचे पहुँचा
और उसे भून कर खाने का विचार करने लगा। उसने रूमाल से बच्चे की टांगें बांध दी ताकि वह भाग न जाय । इसके बाद वह कुछ दूर एक पत्थर के पास जाकर अपनी छुरी पैनी करने लगा। इतने में मुगी अपने बच्चे के पास आ पहुँची और वात्सल्य के वश होकर बच्चे को चाटने लगी, रोने लगी और अपना स्तन उसके मुंह की ओर करने लगी। बच्चा बेचारा बँधा हुआ तड़फ रहा था। वह अपनी माता से मिलने और उसका दूध पीने के लिए कितना उत्सुक था, यह कौन जान सकता है ? मगर विवश था। टांगें बँधी होने के कारण वह खड़ा भी नहीं हो सकता था। अपने बच्चे की यह दशा देखकर मृगी की क्या हालत हुई होगी, यह कल्पना करना भी कठिन है। माता काभावुक हृदय ही मृगी की अवस्था का अनुमान कर सकता है। मगर वह भी लाचार थी। वह आँसू बहा रही थी और इधर-उधर देखती जाती थी कि कोई किसी ओर से आकर मेरे बालक को बचा ले! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com