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बीकानेर के व्याख्यान ]
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तब मेरे संसारावस्था के मामाजी दुकान पर गेहूँ भेज देते। वे कहलाते-बैठे-बैठे क्या करोगे, गेहूँ बीना । लेकिन बीनना क्या था-गेहूँ या कंकर ? गेहूँ तो अच्छे ही हैं, लेकिन कंकरों पर नज़र न रही तो गेहुओं में कंकर रह जाएँगे, पिस जाएँगे, पेट में जाएँगे और फिर पथरी की बीमारी पैदा करेंगे। इसी प्रकार आत्मा के गुणों पर ध्यान न देकर दोषों पर ध्यान देना आवश्यक है । यह देखना चाहिए कि आत्मा कहाँ भूल करता है ? इस बात पर ध्यान रक्खा जाय और जैसे गेहुओं में से कंकर निकाल दिये जाते हैं, उसी प्रकार आत्मा के दोषों को, त्रुटियों को, भूलों को निकाल दिया जाय तो आत्मा की शुद्धि हो सकती है।
जिन लोगों पर तुम्हारा वश नहीं चलता, उन पर क्रोध न करना तुम्हारी क्षमाशीलता की कसौटी नहीं है । जो तुम्हारे अधीन हैं, तुम्हारे मुखापेक्षी है, जिनको तुम बना-बिगाड़ सकते हो. उन पर भी क्रोध न आने दो। उनके कटुक वचन को भी अमृत समझ लो । यह तुम्हारी क्षमाशीलता की कसौटी है । जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं वे धन्य हैं।
बिच्छू का विष दूसरों को चढ़ता है, लेकिन मंत्रवादी कहता है कि मुझे नहीं चढ़ता। अब अगर मंत्रवादी को भी ज़हर चढ़ गया तो वह मंत्रवादी ही क्या रहा ? साँप-बिच्छू का ज़हर उतर जाना उतना कठिन नहीं है, जितना क्रोध भरे कटुक शब्द रूपी वाणों का ज़हर उतरना कठिन होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com