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________________ बीकानेर के [ २३६ श्रो पुरुष ! निरर्थक श्रम करने वाला मूर्ख होता है । समुद्र को तैर कर पार करना संभव नहीं है और फिर तूफान के समय की तो बात ही क्या है । मृत्यु के समय अनावश्यक परिश्रम क्यों कर रहा है ? अब हाथ-पैर हिलाना छोड़ दे और इच्छा हो तो भगवान् का नाम जप | महाजातक हाथ-पैर हिला रहा था । देव की सलाह सुनकर भी वह निराश नहीं हुआ । उसने देव से पूछा- आप कौन हैं ? देव ने कहा- मैं समुद्र का देव हूँ । महाजातक - आप देव होकर भी क्या हम मनुष्यों से गयेबीते हैं ? आपका काम तो उद्योग करने के लिए उपदेश देने का है, लेकिन आप तो उद्योग छोड़कर डूब मरने का उपदेश देते हैं ! आप अपना काम करिये और किसी का भला हो सकता हो तो वह कीजिये । मुझे भुलावे में मत डालिये । मैं अपने उद्योग में लगा हूँ । रही भगवान् का नाम जपने की बात | सो मौत से बचने के लिए भगवान् का नाम जपना मैं कायरता समझता हूँ । यों अपने कल्याण के लिए और मृत्यु से दुःख न पहुँचने देने के लिए मैं परमात्मा का स्मरण अवश्य करूँगा । महाजातक ने देव से दूसरों का भला करने के लिए तो कहा; मगर अपने लिए सहायता न माँगी । महाजातक का उत्तर प्रभावित करने वाला था । उसने • सोचा- यह मनुष्य ऐसे विकट समय में भी उद्योगशील और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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