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________________ २२४ ] [ जवाहर - किरणावली की ही सेवा करनी पड़े या उसकी सेवा का उत्तरदायित्व आपके ऊपर आ पड़े तो आप यही कहेंगे कि यह नौकर क्या रक्खा हम स्वयं इसके नौकर बन गये ! आप ऐसे नौकर को रखना पसंद नहीं करेंगे और अलहदा कर देंगे । यही बात धन के संबंध में है । धन के द्वारा आपने अपनी श्रात्मा की कुछ भलाई कर ली तब तो आप उसके स्वामी हैं। अगर धन की बदौलत नरक में पहुँचाने वाले काम हुए- धन मे आपको नरक का पात्र बना दिया तो आप धन के स्वामी कैसे कहलाए ? चार थाने के लिए झूठ बोलना, कम तौलना, कम नापना, अच्छी चीज़ में बुरी मिलाकर बेचना और झूठे दस्तावेज़ बनाना धन की गुलामी करना नहीं है तो क्या है ? ऐसा धन धनी को भोगता है. धनी उसको नहीं भोगता । धन के आगे धर्म प्यारा न लगना धन की गुलामी का अर्थ है । धर्म की परवाह न करके जो अनीति और छलकपट से धन एकत्रित करने में लगा रहता है, वह वीतराग का मार्ग नहीं पा सकता। जिसे वीतराग का मार्ग पाना है उसे धन के लिए अन्याय - अनाचार करने का परित्याग करना चाहिए । जो पुरुष ऐसा करने के लिए संकल्प करके तैयार हो जायगा और तात्कालिक कठिनाइयों की परवाह न करके अपने संकल्प पर दृढ़ रहेगा, वही भगवान् के चरणों का आश्रय पा सकेगा । के चरण भव- कुप में डूबते को अवलम्बन हैं । भगान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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