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________________ २१८] [जवाहर-किरणावली ----- - -- - पावन पद-पंकज का आश्रय लिया है, संसार की कोई भी शक्ति उन्हें दुखी नहीं कर सकी । हाँ, एक बात ध्यान में रखनी होगी। एक साथ दो घोड़ों पर सवार होने की चेष्टा करने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती । ऐसा करने वाला सफलता नहीं पा सकता। इसी प्रकार धन का भी अवलम्बन चाहने से और भगवान् का भी अवलम्बन चाहने से काम नहीं चलेगा। जो भगवान् के चरणों का आधार चाहता है उसे धन का आधार त्यागना पड़ेगा। जो धन के आधार पर निर्भर है उसे भगवान के चरणों का आधार नहीं मिलेगा। ठाणांगसूत्र में कहा है दुवे ठाणे पाया केवलीपरणतं धम्मं नो बभेजा सबणियाए। अर्थात् दो बातों को बुरी समझे विना और उनके प्रति राग का त्याग किये विना सर्वज्ञ भगवान् द्वारा प्ररूपित धर्म का श्रवण प्राप्त नहीं होता। वे दो बातें हैं-प्रारम्भ और परिग्रह । जब तक इन दोनों की ओर से प्रात्मा विमुख न हो जाय तब तक अरिहन्त भगवान् के शरण में नहीं पहुँचता। प्रश्न किया जा सकता है क्या धर्म और ईश्वर का दायरा इतना संकीर्ण है ? केवलि द्वारा प्ररूपित धर्म को अगर प्रारंभ और परिग्रह का त्याग किये बिना कोई सुन भी नहीं सकता तो उसका आचरण कैसे कर सकेगा ? ऐसी दशा में केवली का धर्म सिर्फ साधुओं के लिए ही है, गृहस्थों के लिए नहीं ? इस प्रश्न का उत्सर यह है कि केवलि-कथित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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