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________________ २१६ ] [ जवाहर - किरणावली बुलाया जाय । उससे कहा जाय - 'भाई, आ जा । तेरा जीवन चारों ओर से खतरे में है । तू शीघ्र ही नीचे गिरने वाला है और नीचे गिरते ही भयानक विषधर तुझे डॅस लेगा । इसलिए तू इस विमान में बैठ जा । विमान में बैठकर तू सकुशल अपने स्थान पर पहुँच जायगा ।' मगर वह मधु का लोभी मधु के बूँदों पर इतना अधिक मोहित हो गया है कि अपने भविष्य की चिन्ता नहीं करता। बूँदों का लाभ नहीं छोड़ सकता। ऐसी दशा में तारक क्या करे ? विमान का अवलम्बन देने के लिए जो तैयार है, उसका क्या अपराध है ? यही बात भगवान् के विषय में है । भगवान् वीतराग हैं । सब के तारनहार हैं । सब पर समभाव होने से किसी की प्रार्थना की भी अपेक्षा नहीं रखते । परन्तु जब तिरने वाले की इच्छा ही न हो तो वे तारें कैसे ? वीतराग होने के कारण भगवान् का न किसी पर राग है, न द्वेष है । उनके चरणकमल सब के लिए समान हैं। विना किसी भेदभाव के प्राणी मात्र प्रभु के चरणों का सहारा ले सकते हैं । जो सहारा लेता है वह तर जाता है और जो सहारा लेगा, तर जायगा । मगर मोह की प्रबलता के कारण जो मनुष्य सहारा ही नहीं लेता, बल्कि लेना ही नहीं चाहता, वह कैसे तरेगा ? ऐसी हालत में अगर वह तर नहीं सकता और दुःखों का पात्र बना ही रहता है तो अपराध उन चरणों का नहीं है । भगवान् के चरणों का श्राश्रय लेकर तो असंख्य मनुष्य तरे हैं। बड़े-बड़े पापियों 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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