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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ २०६ कहते हैं और ज्ञानी जिसे बुद्धिमान् कहते हैं उसे अज्ञानी मूर्ख कहते हैं । 1 जिसके हृदय में प्राणीमात्र के प्रति मैत्री भावना उत्पन्न हो जाती है, वह स्वयं कष्ट सहन करके भी दूसरों की भलाई करता है । मैत्री भावना वाला पुरुष अपने स्वार्थ में फँसकर दूसरों के हित का घात नहीं करता अतएव मैत्री भावना धारण करो और जगत् के हित में अपना हित मानो । ऐसा मानने से निश्चय ही आपका हित होगा । अब प्रमोद भावना का विचार करें। जिस वेश्या के प्रति मैत्री भाव रखना है, उस पर प्रमोदभाव भी रक्खा जा सकता है । वेश्या को देखने पर गुणी जनों की याद आएगी । प्रमोदभावना वाला पुरुष विचार करेगा - एक तो यह सुन्दर शरीर वाली है और दूसरी सती भी सुन्दरं शरीर वाली है । लेकिन यह अपने सौन्दर्य से लोगों को नरक की ओर ले जाती है और सती नरक से निकालती है । सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाएँ तो भी वह अनाचार में प्रवृत्त नहीं हो सकती । तात्पर्य यह है कि अँधकार देखने पर ही प्रकाश की याद आती है। ईश्वर को भी लोग तभी याद करते हैं जब दुःख होता है । इस प्रकार वेश्या के प्रति भी प्रमोदभावना धारण की जा सकती है । कष्ट में पड़े हुए, विपदा के सताये हुए जीव पर दया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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