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बीकानेर के व्याख्यान ]
' नहीं '
आपमें धर्म और जाति संबंधी कुछ ऐसे संस्क र परम्परा से चले आये हुए मौजूद हैं कि आप ऐसे प्रत्यक्ष पाप से बचे हैं । मगर विचार करो कि रूपान्तर से तो छुरी नहीं फेरते ? कसाई तो कसाई ही कहलाता है । उसे छुरी फेरते समय दया नहीं आती, लेकिन कलम फिरा कर आप तो किसी की गर्दन नहीं काटते ? अगर कलम चलाते समय आपका अन्तःकरण दयाहीन हो जाता है तो उसका प्रधान कारण लोभ ही है । प्राणी मात्र को अपना मित्र मान कर विचार करो कि- अरे आत्मा ! तेरे में इतनी तृष्णा क्यों है ? तू दूसरे के पाप देखता है पर अपने पाप क्यों नहीं देखता ? जब तक तृणा से हृदय परिपूर्ण है तब तक कसाई को दया कैसे श्रा सकती है ! तृष्णा के होने पर दया उड़ जाती है और केवल स्वार्थ साधने की ही बुद्धि रहती है ।
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सम्पूर्ण तृष्णा तो उच्च अवस्था प्राप्त होने पर ही जीती जा सकती है, मगर अनुचित तृष्णा पर तो इस अवस्था में भी विजय प्राप्त की जानी चाहिए। पैसे की आवश्यकता होने से कसाई पशु को मारता है, लेकिन वह चाहे तो खेती करके भी अपनी आवश्यकता पूरी कर सकता है । मगर वह विवेकहीन और मर्यादाहीन तृष्णा में पड़ गया है ।
सुना है कि देहली में एक मेम तांगे में बैठकर शराब की दुकान पर शव लेने गई । पिकैटिंग करने वालों ने विनम्र
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