SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीकानेर के व्याख्यान ] करते हैं तो नरक के जीव आपके मित्र हुए या नहीं ? लोग सुखी को मित्र मानते हैं, दुःखी को मित्र नहीं बनाना चाहते । लेकिन भगवान् गौतम, महाप्रभु महावीर से आशा प्राप्त करके प्रत्यक्ष नरक देखने गये थे ! मृगालोढ़ा का दुःख देखकर गौतम स्वामी के हृदय में अपूर्व विचार उत्पन्न हुआ । उन्होंने मृगालोढ़ा को अपना मित्र बनाया। क्या आप भी किसी ऐसे को अपना मित्र बनाते हैं ? लोग मंदिरों, स्थानकों और गिर्जाघरों में जाते हैं। मगर कितने ऐसे हैं जो कत्लखाना देखने जाते हैं ? गौतम स्वामी को वहां जाने में घृणा नहीं हुई जहां मृगालोढ़ा प्रत्यक्ष नरक भोग रहा था, फिर आपको कत्लखाने में जाने मात्र से क्यों घृणा होती है ? मृगालोढ़ा राजकुमार होते हुए भी नरक भोग रहा था । गौतम स्वामी कहते हैं कि मैंने नरक का वर्णन सुना ही था; नरक देखा नहीं. था । परन्तु अब साक्षात् देख रहा हूँ । मृगा लोढ़ा को देखकर गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि – 'प्रभो ! मृगा लोढ़ा नरक क्यों भुगत रहा है ?' इस चर्चा का नाम भी शास्त्र रक्खा गया है ! जब उसका शास्त्र बना है तो उससे कुछ लाभ तो लेना चाहिए ! कुछ लाभ न होता तो शास्त्र में इस चर्चा को स्थान ही क्यों मिलता ? [ २०५ सोक्रेटीज़ ( सुकरात ) एक बड़ा आत्मवादी विद्वान् हो गया है । उसके जीवनचरित में लिखा है- सुकरात के हृदय में कत्लखाने से जैसी जागृति हुई वैसी किसी दूसरी चीज़ से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy