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बीकानेर के व्याख्यान ]
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ड़ना । मैं पैसे के लिए ही नीच काम करती हूँ !' तुम विचार करो कि पैसा कितना नीच है कि तूने मेरी इस बहिन के जीवन को बर्बाद कर दिया ! मैं तेरे चक्कर में नहीं आऊँगा ।
इस प्रकार विचार करने से वेश्या भी मित्र बन सकती है या नहीं ? जिसे सत्संग का लाभ प्राप्त है और जिसमें ज्ञान है, उसी के लिए वह मित्र है, अन्यथा शत्रु तो है ही । जो पैसे के लोभ में पड़कर नीच काम करता है, वह वेश्या के ही समान है ।
झूठ बोलना, बाप-बेटे में झगड़ा होना, भाई-भाई में लड़ाई उनना, यह सब किस कारण से होता है ? इन सब अनर्थों का प्रधान कारण पैसा ही है। पैसा घोर से घोर अर्थ करा डालता है । वेश्या तो पैसे के लोभ में पड़कर नीच की संगति ही करती है मगर क्या आपने नहीं सुना कि पैसे के लोभ ने बाप के द्वारा अपने बेटे की हत्या तक करवाई है ? इसी लोभ के चंगुल में पड़कर पत्नी ने क्या पति को नहीं मार
डाला ?
जिसके हृदय में वेश्या को देखकर इस प्रकार की विचारधारा बहने लगती है, समझना चाहिए कि वही ज्ञानी है । जब वेश्या रूप निमित्त को पाकर ज्ञान उत्पन्न होता है तो वेश्या भी मित्र - हितकारिणी हुई ।
ज्ञानी पुरुष को जैसी शिक्षा सती सीता के उज्ज्वल चरित्र से मिल सकती है वैसी ही शिक्षा मलीन आचरण वाली वेश्या
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