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बीकानेर के व्याख्यान ]
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तो जिसमें कर्म बांधने की शक्ति है, वह ज्ञान प्राप्त करके देखे और अपने मन को पलट कर उस वेश्या को बुरी दृष्टि से देखने के बदले मातृभाव से देखे या कल्याणभाव से देखे तो वह क्या अपने कर्म का आप ही नाश नहीं कर सकता ? 'अवश्य कर सकता है !'
वेश्या निमित्त रूप से कर्म का बंध करा सकती है और कर्म का नाश भी करा सकती है । वह सुप्रतिष्ठित भी करा सकती है और दुष्प्रतिष्ठित भी करा सकती है। आपको ज्ञानधन बनना चाहिए । संसार तो यही समझता रहेगा कि वेश्या नरक का द्वार है, खराब प्रवृत्ति में डालने वाली है, घोर मोह में डुबाने वाली है, लेकिन ज्ञानधन वेश्या को भी अपने कर्मनाश का कारण बना लेगा । इसलिए शास्त्रकारों ने कहा है
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सत्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदम्, क्लिष्ट षु जीवेषु कृपापरत्वम् । माध्यस्थ्यभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममारमा विदधातु देव !
हे देव ! अगर तू मुझपर प्रसन्न है तो मैं और कुछ नहीं चाहता, केवल यही चाहता हूँ कि प्राणीमात्र के प्रति मेरे अन्तःकरण में मित्रता का भाव बना रहे ।
आप कह सकते हैं कि वेश्या से मैत्री किस प्रकार की जन्म ? किन्तु वेश्या क्या प्राणी नहीं है ? क्या वेश्या में आत्मा
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