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बीकानेर के व्याख्यान ]
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जायगा ।
मित्र - राजा के अपराधी को मेरे घर में शरण ! मैं बालबच्चे वाला आदमी हूँ । आपको मेरे हानि-लाभ का भी विचार करना चाहिए ! राजा को पता चल गया तो मेरी मट्टी पलीद होगी ! अगर आप मेरे मित्र हैं तो मेरे घर से आपको अभीअभी चला जाना चाहिए ।
प्रधान - मित्र, क्या मित्रता ऐसे ही वक्त के लिए नहीं होती ? इतने दिन साथ रहे, साथ खाया-पिया और मौज की ! आज संकट के समय धोखा दोगे ? क्या आज इसी उत्तर के लिए मित्रता वांधी थी ?
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मित्र - आप मेरे मित्र हैं, इसी कारण तो राज को खबर नहीं दे रहा हूँ । अन्यथा फौरन गिरफ्तार न करवा देता ? लेकिन अगर आप जल्दी रवाना नहीं होते तों फिर लाचार होकर यही करना पड़ेगा ।
प्रधान - निर्लज ! मैंने तुझे अपनी आत्मा की तरह स्नेह किया और तू इतना स्वार्थी निकला ! विपदा का समय चला जायगा, मगर तेरी करतूत सदा याद रहेगी ।
बाहर रात्रि का घोर अंधकार था और प्रधान के हृदय में उससे भी घनतर निराशा का अंधकार छाया था । उसे अपने पर्व मित्र की याद आई। मगर दूसरे ही क्षण खयाल आया - जब नित्यमित्र ने यह उत्तर दिया है तो पर्वमित्र से क्या
आशा की जा सकती है ? मगर चलकर देखना तो चाहिए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com