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बीकानेर के व्याख्यान]
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हो जायगा। मगर ज्या-ज्या संसार घूमता है, त्यों-त्यों आत्मा इसे ज्यादा मज़बूती से पकड़ता है और समझता है कि अगर मैंने संसार को छोड़ दिया तो गिर जाऊँगा। तोते की तरह आत्मा इसी भ्रान्ति में पड़ा है। अगर आत्मा समझ ले कि मेरे घूमने से ही संसार घूमता है तो उसके सब चक्कर मिट जाएँ।
मित्रो ! अगर आप वास्तविक कल्याण चाहते हैं तो इस भूल पर विचार करो । इस प्रकार सुख और दुःख का कर्ता प्रात्मा ही है। शास्त्र भी यहीं कहते हैं
अप्पा मित्तममित्त च । अर्थात्-आत्मा स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है। अब प्रश्न उपस्थित होता है कि मित्र किसे कहते हैं ? मिठाई और चूरमा खाने वाले मित्र तो बहुत मिलेंगे, मगर संकट के समय साथ देने वाले मित्र विरले ही होते हैं । सम्पत्ति के समय मिठाई-चूरमा खाने वाले और मीठी-मीठी बातें बनाने वाले किन्तु संकट के समय किनारा काट जाने वाले लोग मित्र नहीं छिपे शत्रु हैं । सच्चा मित्र वह है जो घोर से घोर संकट आने पर भी अपने मित्र का साथ देता है और अपने मित्र को संकर से बचाने के लिए अपने प्राणों को भी संकट में डाल सकता है। सच्चे मित्र की कसौटी ऐसे अवसर पर ही होती है।
श्री जम्बू स्वामी ने अपनी पत्नियों के सामने मित्रता का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com