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[ जवाहर - किरणावली
प्रचार अक्षरज्ञान के बिना नहीं हो सकता । यह विचार कर ही भगवान् ऋषभदेव ने ब्राह्मी को लिपिज्ञान दिया था । भगवान् के आशय को आप समझिए और अपनी संतति को मूर्ख मत रहने दीजिए। ज्ञान का प्रचार करने का उद्योग कीजिए । ज्ञान की वृद्धि उन्नति का मूल मंत्र है । आपके पास जो भी शक्ति हो, ज्ञान के प्रचार में लगाइए। इतना भी न कर सकें तो कम से कम ज्ञान और ज्ञान - प्रचार का विरोध तो मत कीजिए । ज्ञान की शिक्षा की निन्दा करना, उसमें रोड़े अटकाना और जो लोग ज्ञान का प्रचार कर रहे हैं उनका विरोध करना बुरी बात है। ज्ञान का प्रचार शासन की प्रभावना का प्रधान अङ्ग है। सच्चे ज्ञान का प्रचार होने पर ही चारित्र के विकास की संभावना की जा सकती है । आप लोग ज्ञान और चारित्र की आराधना करके आत्मकल्याण में लगें, यही मेरी आंतरिक कामना है ।
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