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________________ बीकनेर के व्याख्यान [१४३ ___...- ------ अर्थात्-बेचारा अज्ञानी जीव क्या कर सकता है ? वह अपने कल्याण और अकल्याण को कैसे समझ सकता है ? इसलिए उक्त सूत्र में आगे कहा गया है __ पढमं नाणं तो दया एवं चिटुइ सन्वसंजए । अर्थात् -पहले ज्ञान की आराधना करनी चाहिए और उसके बाद चारित्र की अाराधना हो सकती है। सभी संय - मवान् महापुरुष ऐसा ही करते हैं। वे बिना शान के चारित्र की आराधना करना संभव नहीं मानते। इस प्रकार चारित्र की आराधना करने से पहले ज्ञान की आराधना करना अावश्यक बतलाया गया है । वास्तव में ज्ञान के बिना सम्य-- चारित्र की आराधना हो ही नहीं सकती। इसी प्रकार चारित्र से रहित अकेला शान पंगु है । चारित्र की सहायता के बिना उससे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि अगर कोई सिर्फ क्रिया को ले बैठे और ज्ञानगुण की अवहेलना कर दे तो वह अंधे की तरह भटका-मटका फिरेगा और उसे उस फल की प्राप्ति नहीं हो सकती जिसे वह प्राप्त करना चाहता है। इसी तरह अगर किसी ने शान पाकर चारित्र की अवहेलना कर दी तो वह भी सिद्धि से वंचित रहेगा। शास्त्र में कहा है भयंता, अकरिता य बंधमोक्खपइणिणो। वायावीरियमित्तणं समासासेन्ति अप्पर्य ॥ अर्थात्-शान से ही बन्ध और मोक्ष मानने वाले लोग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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