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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ १२५ छूटे, परदेश जो स्व गांठ की पूँजी गँवा बैठा तो यही कहा जाएगा कि उसने अपने लक्ष्य से विपरीत काम किया। इस धन कमाने के लिए उठने वाले का और धन न कमाने वाले को कष्ट तो वही हुए जो कमाने वाले को होते हैं । स्त्री, माता, पिता श्रादि जाना पड़ा, सफर की दिक्कतें भोगनी पड़ीं. घर तंत्रता थी वह बाहर नहीं रही । यह सब कष्ट सहने पर भी काम उलटा किया । जिस उद्देश्य को लेकर घर से निकला था यह उद्देश्य पूरा नहीं हुआ । इस प्रकार वह न इधर का रहा, न उधर का रहा । पूँजी गँवाकर घर लौटने वाले को संकोच और लज्जा का भी अनुभव होता है । कदाचित् लौट भी आता है तो घर के लोग उससे घृणा करते हैं, उसे फटकारते हैं और खुद भी दुखी होते हैं । कष्ट भी व्यावहारिक नतीजा कुछ न निकला । । यह . लौकिक बात है । पारलौकिक बात भी इसी तरह समझना चाहिए । साधु बनने के लिए उठने वाले को घरबार छोड़ना ही पड़ा । साधु अवस्था के लज्जा के कारण सहने पड़े और यही नहीं वरन् उलटी हानि हुई केशलोंच, भिक्षा, विहार आदि, जो साधु को करने पड़ते हैं, वह सब तो लोकलख्खा के कारण करने ही पंड़े परन्तु उनमें श्रद्धा न होने से वे फलदायक नहीं हुए, क्योंकि वे सिर्फ लोकदिखावे के लिए ही किये गये । जब तक कोई देखता रहता है, तब तक वह नियमों का पालन करता है, और जब कोई नहीं देखता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com .
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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