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________________ १०६] [जवाहर--किरणावली ------------- --------------- मेहमान-घबराओ मत । मुझे तो पहले से तुम्हारी चिन्ता थी। इसलिए मैंने अपनी शक्ति भर तुम्हारे लिए सब कुछ किया है। मैंने ठाकुरजी से विनय की-आप दीनदयाल हैं। बाई के अपराध को क्षमा करके यहीं रहिए । अन्यथा मेरी बहुत बदनामी होगी। तब ठाकुरजी बोले-मैं अब तक के अपराधों को क्षमा कर सकता हूँ, पर इससे लाभ क्या होगा? जो अपराध आगे भी करते रहना है, उसके जिए क्षमा मांगने से क्या लाभ है ?. जिस अपराध के लिए क्षमा मांगनी है, वही अपराध आगे न किया जाय, तभी क्षमा मांगना सार्थक होता है। अगर वह बाई भविष्य में सब के प्रति आत्मभाव रक्खे, दूसरे की मार खाकर भी बदले में न मारे, गाली सुनकर भी गाली न दे और शांत बनी रहे, सब के प्रति नम्र हो, सब की प्रिय बने, तो मैं रह सकता हूँ, अन्यथा नहीं । अब आप बतलाइए कि आपकी इच्छा क्या है ? आप ठाकुरजी की शर्त पूरी करके उन्हें रखना चाहती हैं या नहीं? फुलां-बलहारी है आपकी ! मैं अब आपकी शरण में हूँ। आपको तो ठाकुरजी स्वप्न में ही मिले और स्वप्न में ही आपने उनसे बातचीत की, परन्तु मुझे तो आप साक्षात् ठाकुरजी मिले हैं । आपने मेरी आंखें खोल दीं। वास्तव में मेरी क्रूरता के कारण सब त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। मैं भक्त नहीं नागिन हूँ। मैंने सदा ही अपने मुँह से विष उगला है। आप पर भी मैंने जहर बरसाया पर आपकी आंखों से अमृत ही निकला। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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