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[ जवाहर - किरणावली
मेहमान - उन्होंने कहा कि भगत! चल । अब मैं इस घर में नहीं रहूँगा, तेरे साथ चलूँगा। मैंने ठाकुरजी से कहामैंने इस घर का नमक खाया है । आप मेरे साथ चलेंगे तो मेरी बदनामी होगी ।
'फूलां - ठाकुरजी मेरे घर से रूठे क्यों हैं ? किस कारण जाना चाहते हैं ?
मेहमान - मैंने यह भी पूछा था कि आप इस घर से क्यों रूठ गये हैं ? उन्होंने उत्तर दिया कि मैं इस घर से ऊब गया हूँ । अब इस घर की सत्ता मुझसे नहीं सही जाती । मैं धीरज रख रहा था कि अब सुधरे, अब सुधरे, मगर अभी तक कुछ सुधार नहीं हुआ । उन्होंने यह भी कह दिया कि मैं तेरे हृदय में बसूँगा । तू भक्त है । मैंने ठाकुरजी से पूछा- क्या कपड़ों की या नैवेद्य की कुछ कमी रही ?
फूलबाई ने चट किवाड़ खोल दिये और कहने लगीमैं ठाकुरजी के लिए किसी चीज़ की कमी नहीं होने देती । फिर वे नाराज़ क्यों हो गये ?
मेहमान - मैंने भी तो उनसे यही प्रश्न किया था। उन्होंने उत्तर दिया- तू भी मूर्ख मालूम होता है । मैं क्या उसके कपड़े-लत्ते के लिए नङ्गा-भूखा बैठा हूँ ! मैं अपनी सत्ता से संसार का ईश्वर हुआ हूँ। वह क्या चीज़ है जो मुझे कपड़ेलत्ते और नैबेद्य देगी ? मुझे उसकी परवाह ही कब है ?
फूलां - मैं जानती थी कि ठाकुरजी इन्हीं चीज़ों से प्रसन्न
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