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[ जवाहरकिरणावली
करते हैं कि उन्हें अपने प्रयत्नों के फलस्वरूप शांति के बदले उलटी अशांति ही प्राप्त होती है, लेकिन श्रशांति कोई चाहता नहीं चाहते हैं सभी शांति ।
शांति के लिए प्रयत्न करने पर भी अधिकांश प्राणियों को शांति क्यों प्राप्त होती है, इसका कारण यही है कि उन्होंने शांति के यथार्थ स्वरूप को नहीं समझा है। वास्तविक शांति क्या है ? कहाँ है ? उसे प्राप्त करने का साधन क्या है ? इन बातों को ठीक-ठीक न जानने के कारण ही प्रायः शांति के बदले अशांति पल्ले पड़ती है । अतएव यह आवश्यक है कि भगवान् शांतिनाथ की शरण लेकर शांति का सच्चा स्वरूप समझ लिया जाय और फिर शांति प्राप्त करने के लिए उद्योग किया जाय ।
भगवान् शांतिनाथ का स्वरूप समझ लेना ही शांति के स्वरूप को समझ लेना है । गणधरों ने भगवान् शांतिनाथ के स्वरूप को ऊंचा बतलाया है । उस स्वरूप में चित्त को एकाग्र करके लगा दिया जाय तो कभी शांति न हो। मित्रो ! आओ, श्राज हम लोग मिलकर भगवान् के स्वरूप का विचार करें और सच्ची शांति प्राप्त करने का मार्ग खोजें ।
भगवान् शांतिनाथ के संबंध में शास्त्र का कथन हैचहत्ता भारहं यासं चक्कत्रट्टी महठियो ।
सन्ती सन्ति करे लो !, पत्तो गद्दभणुत्तरं ।
यहाँ भगवान् के विषय में कहा गया है - 'संती संतीकरे
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