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________________ ८९ प्रतिष्ठा, ४ पुस्तक लेखन, ५ से ८ तक चतुर्विधसंघ भक्ति और ९ शत्रुञ्जय आदी तीर्थ यात्रा इन नव क्षेत्रों में से मैने किस क्षेत्र को स्पर्शा है ? अर्थात् किस ओर धन खर्च किया है ? किस क्षेत्र को नहीं स्पर्शा ? जो क्षेत्र स्पर्श नहीं किया अर्थात् आराधन नहीं किया, उसको आराधन करूँ और दशवेकालिक आदि जो शास्त्र गुरु मुख से श्रवण नहीं किये, उनको श्रवण करने का प्रयत्न करूँ | श्रावक सर्वदा संसार से विरुक्त होकर दीक्षा लेने का ध्यान कदापि नहीं छोड़ता तथापि वह अवसर पर दीक्षा लेने का मनोरथ करे । इस प्रकार निशा (रात्रि) शेष में जाग कर चितवन करे । जब रात्रि मुहूर्त्त ( दो घडी ४८ मिनिट ) मात्र शेष रह जाये तब षडावश्यक करे । यदि कार्यान्तर से व्याकुल हो षडावश्यक न कर सके तो भी प्रत्याख्यान - आवश्यक यथाशक्ति जरूर चिन्तवन करे । श्रावक जघन्य से जघन्य (कम से कम ) सूर्योदय से दो घड़ी पर्यन्त ( नमुक्कारसी का ) नमस्कार सहित प्रत्याख्यान करे | इसके बाद सूर्य का अर्द्ध बिम्ब दिखाई दे तब निर्मल मनोहर वस्त्र पहन कर घर देहरा में जिनराज की पूजा करे और बाद में महोत्सव पूर्वक बड़े मन्दिर में जाकर पूजा करे। पूजन विधि विस्तार भय से यहां नहीं लिखी, वह जैन शास्त्रों से जानना । देवपूजा करने के बाद नगर में गुरु हों तो उनके पास जाकर विनयपूर्वक वन्दना करे और उनसे व्याख्यान सुने; एवं बाल, वृंद्ध, रोगी आदि साधुओं के खानपान, औषध, पथ्यादि देने में प्रयत्नशील हो । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034895
Book TitleJainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabh Smarak Nidhi
PublisherVallabh Smarak Nidhi
Publication Year1957
Total Pages98
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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