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है। (१) जघन्य, (२) मध्यम और (३) उत्कृष्ट । अविरति सम्यग्दृष्टि श्रावक के कर्त्तव्य जो ऊपर लिखे गये हैं, वे कर्तव्य तो तीनों प्रकार के देशविरति श्रावकों के भी हैं, उनसे जो विशेष गुण होते हैं वे ही यहां पर लिखे जाते हैं।
(१) जघन्य श्रावक के लक्षण-जो जान कर स्थूल जीव की हिंसा न करे, मद्य (शराब) मांसादि अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग करे और नमस्कार सहित प्रत्याख्यानx करे, उसे जघन्य श्रावक समझना चाहिये।
(२) मध्यम श्रावक के लक्षण-जो धर्मोचित गुणों से व्याप्त हो, षट् कर्म और षडावश्यक करे तथा श्रावक के बारह व्रत धारण करे, ऐसे सदाचार युक्त गृहस्थ को मध्यम श्रावक कहते हैं । मध्यम श्रावक के सम्बन्ध में आगे विस्तृत लिखा गया है।
(३) उत्कृष्ट श्रावक के लक्षण-जो सचित्त आहार को त्याग दे, दिन में एक बार भोजन करे और ब्रह्मचर्य का पालन करे, ऐसे गृहस्थ को उत्कृष्ट श्रावक समझना चाहिये ।
यहां पर मध्यम श्रावक का स्वरूप लिखते हैं। धर्म की योग्यता के निम्न लिखित २१ गुण होने चाहिये।
१ गम्भीर हो। २ रूपवान-सम्पूर्णाङ्गोपाङ्ग सुन्दर पश्चेन्द्रिय पूर्ण हो। ३ प्रकृति सौम्य-स्वभाव से सौम्य आकार वाला हो।
४ लोकप्रिय-इस लोक और परलोक विरुद्ध काम न करे और दान, शील आदि गुणों से संयुक्त हो।
x कम से कम दो घडी का पञ्चक्खान जिसे नवकारसी कहते है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com