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दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा, पंजाब प्रांतिक सभा, बंगाल प्रांतिक सभा, मध्यप्रांत और व-हाड प्रांतिक सभा, मद्रास प्रांतिक सभा, मैसूर प्रांतिक सभा, खंडेलवाल दिगंबर जैनसभा, इत्यादि सभाएं कई वर्षोंसे इन्ही त्रुटियोंको पुकारती हुई इलाज करने में कटिबद्ध होरही हैं. इसलिये मालवा प्रांतमें भी और प्रांतोंके समान अपने जैनी भाइयोंमें बहुत कुछ कुरीतियां देखनेमें आती हैं, जिनके कि मेटनेके इलाजमें प्रयत्न करनेकी आवश्यकता है. यह प्रयत्न बडाही कठिन है. ऐसा कई भाई समझते होंगे. लेकिन अपने पूर्वाचार्योंके पारमार्थिक उपदेशसे जैनी भाइयोंकी अंतःकरणरूपी भूमि इतनी शुद्ध बन गयी है कि, इसको यथार्थ उपदेशरूपी जलसिंचन मिलता रहै तो इसमें सम्यक्तरूपी वृक्ष अच्छी तरहसे वृद्धि पाकर ज्ञानचारित्ररूपी फलपुष्पोंसे थोडे ही दिनोंमें प्रफुल्लित होगा. यदि जैनी भाइयोंमें उच्चप्रतीकी पाश्चिमात्य भाषाका साहित्य ज्ञान, कला कौशल्य इत्यादि विद्याओंका सद्भाव बहुत न्यून देखनेमें आता है; और संस्कृत भाषाका साहित्य, न्याय, सिद्धांत तथा अध्यात्म विषय इनके जानकार बहुत बिरले देखने में आते हैं, तो भी इनके अंतःकरणमें अहिंसा धर्मका बीज इतना मजबूत ठसाया गया है कि किसी जैनी भाईको कहा जाय कि एक लाख रुपिया तुझे देते हैं, एक चींटीको तू अपने हातसे मारदे तो वह कभी नहिं मारेगा!! तो फिर शिकार करनेका महापापकार्य जैनियोंसे कोसो ही दूर समझना चाहिये. मांसभक्षण और मद्यपानका व्यसनी जैनी कोई नहिं मिलेगा. वेश्यागमन, परस्त्रीसेवन, चोरी और जुवा इन दुर्व्यसनोमें भी अन्य धर्मियोंके मुकाबलेमें जैनी बहुत कम मिलेंगे. ऐसा कहनेसे अकेला मैं ही अपने जैनी भाइयोंकी तारीफ करताहूं ऐसा नहिं समझना चाहिए. इस बाबतके समालोचक विद्वान जो दुनियाभरके मनुष्योंके आचरणका निरीक्षण और समालोचन करते हैं, वे निष्पक्ष बुद्धीसे कह रहेहैं. देखिये, इस विषयमें महामहोपाध्याय डाक्टर सतीशचंद्र विद्याभूषण क्या कहते हैं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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