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यतनों (जैन मंदिरों) की ऐसी शोचनीय दशा हो रही है कि उनके लिये वेतन देकर पूजा करनेवाले पुजारी रक्खे जाते हैं। जहां आचार विचार ऐसे शुद्ध होते थे कि साधारण श्रावकोंके घरोंमें भी मुनियोंको शुद्ध आहार प्राप्त होता था, वहां आज हमारे घरोंकी यह दशा हो रही है कि उनमें भक्ष्य अभक्ष्य, शुद्ध अशुद्धका प्रायः बिलकुल विवेक उठ गया; अतएव यदि एक मामूली त्यागी भी कोई आजाता है तो उसका सुभीता कठिन दिखता है । हम लोगोंको बाजारकी बनी हुई अभक्ष्य चीजोंके लेने खाने में भी कुछ संकोच नहीं रहा, जूता पहिने चलते २ खाना बडा स्वाद देनेवाला समझा जाता है, यह समयकी खूबी है।
अब आप अपने उन भ्राताओंकी तरफ भी दृष्टि डालिये, जो छोटे २ गांवोमें निवास कर रहे हैं । उनपर दयाबुद्धि धारण कीजिये कि जो आपके भोले भ्राता बिना सच्चे धर्मोपदेशके, बिना सद् विद्याके, अज्ञानतावश अपने कर्तव्यसे च्युत होते हुए मिथ्यात्व कूपमें पडकर आत्महितका घात कर रहे हैं। यहां तक कि मिथ्योपदेशियोंके कुसंगसे निज धर्म छोडकर अन्य धर्मकी शरण ले लेते हैं,
यही कारण है कि प्रतिवर्ष आपकी यह जाति घटती जा रही है । भाइयो, अब अपनी गफलतकी नींदको छोड अपनी सच्ची वत्सलता या प्रेमोका पूरा परिचय दीजिये. और उपर्युक्त अवनति के कारणोंके दूर करने के लिये और इन अपने सहोदर भोले भ्राताओंके उद्धारके लिये हार्दिक प्रीतिके साथ प्रयत्नशील होकर उपायोंको अमलमें लाइये, तभी धर्मोत्साह भी प्रगट होगा।"
सज्जनवृंद, इस मूजब अपने मालवा प्रांतके अग्रणी शेट हुकुमचंदजी साहिब पुकार रहेहैं. यह पुकार समस्त भारत वर्षके जैनियोंके लिये है, क्योंकि भारत वर्षीय दिगंबर जैन महासभा, बंबईप्रांतिक सभा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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