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________________ (२६) कुछ फल परोक्ष रीतसे सिद्ध होते रहता है वह दृष्टिगोचर कालांतरसें होता है. वक्ताके मुखमेसे जो वचनरूप पुद्गल परमाणू बाहिर पडे सो अपना काम अवश्य करते रहते हैं; वे खाली बैठते नहीं. सभाओंके प्रस्तावोंसे बालविवाह कमती होने लगे हैं; वृद्धबिवाहोंकी संख्या कम होगई है: कन्याविक्रय भी कम हुवा है; वैश्यानृत्य और आतिषबाजी हमारे दक्षिण प्रांतमें एकदो सेठ लोगोंकेशिवा कहींपर भी नजर आती नहीं. जगह जगह बोर्डिंगोंका खुलना, पाठशाळा महाविद्यालयोंका चलना, कन्याशाला, श्राविकाशाला, श्राविकाश्रमोंका प्रारंभ होना; मासिक, पाक्षिक साप्ताहिक पत्रों का प्रचार बढना, स्वाध्यायोंका प्रचार बढना, दोदो लाख चार चार लाख रुपये विद्यादान और धोन्नति में लगानेवाले पुरुषोंके दिल इसतरफ झुकना, यह सब फल काहेका है? सभामें प्रस्ताव पास होनेका ही है किसीका फल तत्काल प्रगट होताहै और किसीका कालांतरसे. लेकिन प्रयत्नका फल होता अवश्य है. निराश न होना चाहिये, दृढ निश्चयसे सत्कर्म करतेहि रहना चाहिये. जैनियोंके सिद्धांता नुसार कर्मोका फल इस जन्ममें नहिं मिला तो आगले जन्ममें मिलेगा; वहां नहीं मिला तो उसके अगले भवमें मिलेगा. भवांतरमें कर्मोका फल तीन मंद जैसा बंध होगा और जैसा उदयका निमित्त मिलेगा उस प्रकारका मिलेगा और अवश्य मिलेगा. प्रिय सजनगण, अब मैं अपने भाषणको संकोचताहूं मेरी तुच्छ बुद्धीके अनुसार मेने जो कुछ कहा उसमें यदि कोई कटुक वाक्य हो तो उसकी आप क्षमा करेंगे. हिंदी भाषा मेरी मातृभाषा नहीं है जिससे भाषा दोप बहुतसे होना संभव है, परंतु आप उनपर दृष्टि नहीं करेंगे ऐसी मुझे आशा है. अब सभाका काम आगे चलने के लिये मैं आमे प्रार्थना करता हू. चैत्र शुक्ला ८ र वीर संवत २४४१ हिराचंद नेमचंद. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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