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________________ (२२) ले चुका हूं इसलिये प्राण जाते भी प्रतिज्ञा भंग नहीं करूंगा. खैर; राजाने उसको और राजपुत्रको बडी नदीके प्रवाहमें फेंक देनेका हुकूम दिया. फेंकते हि उसकी प्रतिज्ञाके फलसे देवोंने सिंहासन नीचे रखकर उसे अधर झोल लिया !! राजाने और तमाम लोगोंने प्रतिज्ञा पालन करनेका ऐसा भारी फल होता है ऐसा देखकर वडा आश्चर्य किया. इसी प्रकार श्रेणिक राजाका जीव, जो कि पूर्वभवमें खदिरसार भील था उसने सिर्फ कौवेका मांस न खानेकी मुनिके पास प्रतिज्ञा लीथी. उसको प्राणांतक बीमारी होनेसे प्रतिज्ञा भंग करनेके लिये बहुत कुछ कहा गया, लेकिन उसने प्राण जाय तो अच्छा लेकिन प्रतिज्ञा भंग नहिं करूंगा ऐसा दृढ निश्चय रक्का और मरण पाकर वह स्वर्गमें गया. और वहांसे चवकर श्रेणिक राजा हुवा. श्रेणिक राजाको महावीर स्वामके और गौतम स्वामीके उपदेशसे क्षायिक सम्यक्त हुवा. और पहले पापबंधसे वह नर्कमें है तो भी अनागत चोवसीमें वह तीर्थकर होनेवाला है. भातृगण, देखिए प्रतिज्ञा ग्रहण करनेसे और उसका पालन करनेसे कैसे कैसे फल प्राप्त होते हैं ? प्रतिज्ञा है वह अपने परिणाम स्थिर रखनेको बडा भारी बंधन है. वाणिज्यवृद्धीको भी प्रतिज्ञाका बंधन बडा आवश्यक है. झूट और चोरीका त्याग, चोरीका माल लेनेका त्याग, खोटा हिसाब रखनेका त्याग, लेनेदेनेके तोल वांट खोटे रखनेका त्याग, सरकारी जकात, फी, ष्टांप बचानेका त्याग, एक चीजमें दूसरी चीज मिलाकर ठगाकर बेचनेका त्याग, इत्यादि त्याग प्रतिज्ञा पूर्वक होने चाहिए. और इन प्रतिज्ञाओंका पालन अंतःकरण पूर्वक होना चाहिए. प्रतिदिन अपने दोषोंका उच्चारण अपने मुखसे होना चाहिए प्रतिक्रमणके पाठमें, हा दुकयं हा दुटचिंतियं भासियं च हा दुई। अंतोअंतो डज्झमि पच्छुतावेण वेयंतो ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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