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(२०) संभव रहता है. नफा हुवा तो ठीक ही है. लेकिन भारी नुकसान पहुचा तो थोडी पूंजीवाला थक जाता है. जिससे इस समय बडी पूंजीबिना काम नहीं चलसकता. एक आदमीके पास बड़ी पूंजी बहुत करके होती नहीं. और कदाचित् हुई तो भी अपनी सभी पूंजी ऐसे साहसके काममें डालना बहुतसे चाहते नहीं, और डालना ठीक भी नहीं. थोडी थोडी रकम बहुत आदमियोंसे जमाकर एकत्रित व्यापारकी पद्धतीसे, जिसको जॉइंट स्टॉक कंपनी कहते हैं, काम चलाना चाहिये. लेकिन इसमें भी विश्वासपात्रताकी बडी आवश्यकता है, यह याद रखना चाहिए. अनेक आदमियोंकी जो मंडली बनती है उसमें परस्पर विश्वास होनेकेलिए हरएकका वर्तन बडा प्रामाणिक होना चाहिए. नहीं तो बर्मा ब्यांक, पीपल्स ब्यांक, क्रेडिट ब्यांक, स्पेसी ब्यांक, बंबई ब्यांकिंग कार्पोरेशन इत्यादि बेंके जैसे धूलमें मिल गई और लाखों रुपये शेरवालोंके और जमा रखनेवालोंके डूब गये, और, इस आपत्तीसे इस भारत वर्ष में परस्परका विश्वास नष्ट होगया, जिससेकि बहुत भारी नुकसान हुवाहै, यह सब आप जानते ही हैं. वाणिज्यमें भी सत्यअणुव्रत और अचौर्य अणुव्रत अतीचाररहीत पालन करनेकी अत्यंत अवश्यकता है. यदि उपर्युक्त बेंकवालोंके मेनेजरोंने और डाइरेक्टरोंने पांच अणुव्रत प्रतिज्ञापूर्वक ग्रहण किये होते
और उनके स्थैर्यार्थ प्रतिदिन श्रावकप्रतिक्रमणका पाठ धर्मबुद्धीसे अंतारणपूर्वक करते रहे होते तो ऐसी दुष्ट बुद्धी उनके अंतःकरणमें कभी धसती नहीं. सज्जन महाशय, प्रतिज्ञा करनेका फल बडा भारी होता है यह आप सभी जानते हैं. देखिए, लंकाधीश रावणने अनंतवीर्य केवल के समवशरणमें प्रतिज्ञा लीथी कि, मैं किसीभी परस्त्रीको उसकी इच्छाबिना बलात्कार नहीं भोगूंगा. इतनी हि प्रतिज्ञा होनेसे सीताजीका शील भंग होनेसे बचगया. सीताको हरणकर अपने वहां लेगया और अपने ऊपर आसक्त होनेके लिये उसे बहुत कुछ समझानेका प्रयत्न किया. एक दिन तो इतना निराश होकर अपनी पट्टस्त्री मंदोदरीसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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