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(८०) शुभभावनसों प्राण तजे निज, धन्य और बड़भागी । यह उपसर्ग सह्यो घरथिरता,आराधन चितधारी| तो तुम्हरे. पुत्र चिलाती नामा मुनिको, वैरीने तन घाता। मोटे मोटे कीट पड़े लन, तापर निज गुण राता॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता,अाराधन चितधारी ॥तो तुम्हरे. दंडकनामा मुनि की देही, वाणन कर अरि भेदी । तापर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्म महारिपु छेदी॥ यह उपसर्ग सह्यो धरथिरता,अाराधन चितधारी । तो तुम्हरे. अभिनंदन मुनि आदि पांचसौ, घानी पेलि जु मारे। तो भी श्रीमुनि समता धारी, पूरवकर्म बिचारे । यह उपसर्ग सह्यो धरथिरता,अाराधन चितधारी ॥ तो तुम्हरे. चाणक मुनि गोघरके माहीं, मूंद अगिन परजाल्यो। श्रीगुरु उर समभाव धारके, अपनो रूप सम्हाल्यो। यह उपसर्ग सह्यो धरथिरता,आरायन चितवारी ॥ तो तुम्हरे. सातशतक मुनिवर दुख पायो, हथनापुरमें जानो। बलिब्राह्मणकृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहिं मानौ ॥ यह उपसर्ग सह्यो घरथिरता,अाराधन चितधारी । तो तुम्हरे. लोहमयी आभूषण गढ़के, ताते कर पहराये ॥ पांचों पांडव मुनिके तनमें, तो भी नाहिं चिगाये। यह उपसर्ग सह्यो धरथिरता,पाराधन चितधारी ॥ तो तुम्हरे. और अनेक भये इस जगमें, समता-रसके स्वादी । वै ही हमको हो सुखदाता, हर हैं टेव प्रमादी । सम्यग्दर्शन ज्ञान चरन तप, ये श्राराधन चारों। ये ही मोकी सुख की दाता, इन्हें सदा उर धारों।
यो समाधि उर माही लावो, अपनो हित जो चाहो । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com