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सनतकुमार मुनीके तनमें, कुष्ट वेदना ब्यापी । छिन्न भिन्न तन तासों हूवो, तब चिंत्यो गुण प्रापी॥ यह उपसर्गसह्यो घरथिरता, आराधन चितधारी । तो तुम्हरे. श्रेणिक सुत गंगामें डुब्यो, तव जिन नाम चितायो । घर सलेखना परिग्रह छोड्यो, शुद्ध भाव उर धारयो। यह उपसर्ग सहो धरथिरता,आराधन चितधारी । तो तुम्हरे. समंतभद्रमुनिवर के तनमें, तुधावेदना आई। तो दुख में मुनि नैक न डिगियो, चिंत्यो निजगुण भाई ॥ यह उपसर्ग सह्यो घरथिरता,अाराधन चित्तधारी ॥ तो तुम्हरे. ललितघटादिक तीस दोय मुनि, कौशांबीतट जानो ॥ नद्दो में मुनि बहकर मूवे, सो दुख उन नहिं मानो। यह उपसर्ग सह्यो घरथिरता,अाराधन चितधारी ॥ तो तुम्हरे. धर्मघोष मुनि पानगरी, वाह्य ध्यान घर ठाड़ो। एक मास की कर मर्यादा, तृषा दुःख सह गादो॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता,आराधन चितधारी॥तो तुम्हरे. श्रीदतमुनिको पूर्वजन्म को, बैरी देव सु आके। विक्रय कर दुख शीततनोसो, सह्यो साधु मन लाके । यह उपसर्ग सहो धरथिर,आराधन चितधारी । तो तुम्हरे. वृषभसेन मुनि उष्णशिलापर, ध्यान घयो मनलाई। सूर्य घाम अरु उष्ण पवनकी, वेदन सहि अधिकाई ॥ यह उपसर्ग सह्यो घरथिरता,आराधन चितधारी॥तो तुम्हरे. अभयघोष मुनि काकंदीपुर, महावेदना पाई। वैरी चंडने सब तन छेचो, दुख दीनो अधिकाई। यह उपसर्ग सह्यो घरथिरता,अाराधन चितघारी । तो तुम्हरे. विद्युतचर ने वहु दुख पायो, तो मी धीर न त्यागी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com