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छत्र चमर भामंडल भारी, ये तुव प्रातिहार्य पनिहारी ।। शांति जिनेश शांति सुखदाई, जगत पूज्य पूजों सिरनाई । परम शांति दीजे हम सबको, पढ़े जिन्हें पुनि चार संघको । पूजें जिन्हें मुकुटहार किरीट लाके, इंद्रादिदेव अरु पूज्य
पदाब्ज जाके । सो शांतिनाथ वर वंश जगत्प्रदीप, मेरे लिये करहु शंति
सदा अनुप ।। संपूजकों को प्रतिपालकों को, यतिनकों को यतिनायकों को। राजा प्रजा राष्ट्र सुदेश को ले, कीजे सुखी हे जिन शांतिको दे। होवे सारी प्रजा को सुख, बल युत हो धर्मधारी नरेशा । होघे वरषा समय पे, तिलभर न रहे व्याधियों का अंदेशा ।। होवे चोरी न जारी, सुसमय वरतै, हो न दुष्काल मारी। सारे ही देश धारे,जिनवर वृष को जो सदा सौख्यकारी ॥
घाति कम जिन नाश करि पायो केवलराज । शांति करें ते जगत में, वृषभादिक जिनराज ।।
(तीन बार शांति धारा देवें)
. विसर्जन पाठ । बिन जाने वा जान के, रही टूट जो कोय । तुव प्रसाद ते परम गुरु, सो सब पुरन होय ॥
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