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(३६) और धर्माचरण करने में रुकावट नहीं डालनी होगी।
(६) मेरे संबन्ध की और घर की कोई बात मुझसे नहीं छिपानी होगी क्योंकि मैं भी आपकी सच्ची सलाह देने वाली हूं। कदाचित उससे आपको लाभ होजाय और अपना संकट दूर हो जाय । साथ ही इससे परस्पर विश्वास भी बडेगा।
(७) अपने घर की गुप्त वात दूसरे के याने मित्र आदि के समक्ष प्रकट नहीं करनी होगी। लोगों को मनोवृत्ति प्रायः यह होती है कि वे दूसरे घर की छोटी सी बात 'तिलका ताड' की उक्ति के समान बडी करके अपवाद फैलादेते हैं।
इन सात प्रतिज्ञाओं को घर स्वीकार करे । इनके सिवा और भी कोई खास बात हो तो विवाह के पहले स्पष्ट कर लेना चाहिए । जिससे दाम्पत्य जीवन आजीवन आनन्द पूर्वक व्यतीत हो । सच यह है कि अपने साफ और शुद्ध परिणाम (नियत) ही से संबन्ध अच्छा रह सकता है ।
सप्तपदी के पश्चात् वर को श्रागे करके सातवां फेरा गया जाय और अपने पहले के स्थान पर जन आवें तब वे पति पत्नी के रूप में होकर याने स्त्री पति के बांये ओर और पति स्त्री के दाहिने ओर बैठे। इस अवसर पर खियां मंगलगीत गावें।
* अग्रवाल जाति में जैन व अजैन में तथा हुमड़ जाति में श्वेताम्बर और दिगम्बर में परस्पर विवाह होता है अतः यह प्रतिज्ञा आवश्यक है।
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