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(२५) स्थंडिल पर ही चौकोण तीर्थकर कुंड, गोल गणधर कुंड और त्रिकोण सामान्य केवली कुन्ड की स्थापना कर तीन अर्घ निम्न प्रकार श्लोक पढ़कर घर कन्या से चढ़वावें।
श्रीतीर्थनाथपरिनिर्वृतपूज्यकाले,
आगत्य बनिसुरपा मुकुटोल्लसद्भिः । बहिबजै जिनपदेहमुदारभक्त्या,
देहुस्तदग्निमहमर्चयितुं दधामि ॥१॥ ओं ह्रीं चतुरस्र तीर्थंकरकुण्डे गार्हपत्याऽग्नयेऽयम् । गणाधिपानां शिवथातिकाले ग्नीन्द्रोत्तमांगस्फुरदुअरोचीः । संस्थाप्य पूज्यश्च समाहनीयो,विवाहशांत्यै विधिना हुताशः।। __ओं ह्रीं वृत्ते गणधर कुण्डे अाह्ननीयाग्नयेऽयम। श्री दाक्षिणाभिः परिकल्पितश्च, किरीटदेशात् प्रणताग्निदेवैः । निर्वाणकल्याणकपूतकाले, तमर्चये विघ्न विनाशनाय ॥३॥
ओं ही त्रिकोणे सामान्य केवलिकुण्डे दक्षिणाग्नयेऽयम् । निम्नलिखित पाहूति मन्त्रों का उच्चारण गृहस्थाचार्य करे और वही चाटू से घृत की पाहूति दे । वर और कन्या हाथ को सीधा रखकर मध्यमा और अनामिका अंगुलियों पर साकल्प (हवन द्रव्य) रखकर स्वाहा बोलते हुए पाहूति दें।
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