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________________ (२३) धर्म चक्र पूजा अष्टमंगलमिदं पदांबुजे, भासते शतसुमंगलाघदम् । धर्मचक्रमाभिपूजये वरं, कर्मचक्र परिणाशनोद्यतम् ॥ ३॥ ह्रीं श्री धर्मचक्रायार्ध्यम | प्रदान और वरण - यन्त्र की पूजन के पश्चात् कन्या के पिता और मामा, हो सके तो दोनों ही सपत्नीक, यंत्र के सामने हाथ जोडकर खड़े होवें और वर के पिता और मामा भी उनके सामने अर्थात् यंत्र के पीछे खडे हो जावें । गृहस्थाचार्य कन्या के पिता से उनके बाद में मामा से सबके समक्ष कन्या की सम्मति पूर्वक वर के प्रति निम्न प्रकार बाय बुलवावे :- " मैं आपको धर्माचरण में और समाज की एवं देश की सेवा में सहयोग देने के लिए अपनी यह कन्या प्रदान करना चाहता हूं । आप इसे स्वीकार करें। और धर्म से पालन करें । कन्या के पिता और मामा के इस प्रकार कहने पर वर भी यन्त्र को नमस्कार कर कहे कि " मै श्रापकी कन्या को स्वीकार करता हूं। और इसका धर्म से, अर्थ से और काम से पालन करूंगा।" । इस अवसर पर समस्त स्त्री पुरुष वर कन्या पर अपनी अनुमोदना के साथ पुष्पवृष्टि करें। कन्या के पिता झारी या कलशी में जल लेकर घर के सीधे हाथ की कनिष्ठा अँगुली से बांये हाथ की कनिष्ठा अंगुली स्पर्श कराकर उन अंगुलियों पर निम्न प्रकार मन्त्र पढकर जलधारा छोडे । गृहस्था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ..
SR No.034887
Book TitleJain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherDhannalalji Ratanlal Kala
Publication Year1953
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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