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इलोराका प्राचीन नाम इलापुर है और वह मान्यखेर्ट ( मलखेड ) के राष्ट्रकूट ( राठौरवंशी) राजाओं की राजधानी रहा है । यहाँ " पर पहाड़ को कोलकर बड़े २ सुन्दर मन्दिर बनाये गये हैं । वैष्णव मंदिरोंमें 'बड़ा कैलाशमंदिर' अद्भुत है । बौद्धों के भी कई मंदिर हैं । नं० ३० से नं० ३४ तक के मंदिर जैनियों के हैं । इनमें 'छोटाकैलाश' शिल्पकारी का अद्भुत नमूना है । 'इन्द्रगुफा' और 'जगन्नाथगुफा' मंदिर दो मंजिले दर्शनीय हैं। ऊपर चढ़कर पहाड़ की चोटी पर एक चैत्यालय है, जिसमें भ० पार्श्वनाथ की शक सम्वत् १९५४ की प्रतिष्ठा की हुई प्रतिमा विराजमान है । यहाँ दर्शन-पूजा करके आनन्द आता है । क्या ही अच्छा हो, यदि यहाँ पर नियमित रूप से पूजन- प्रक्षाल हुआ करें ?
मांगीतुंगी
मनमाड स्टेशन से ६० मील दूर मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र है; जहाँ मोटर-लारी में जाया जाता है। श्री रामचन्द्रजी, हनुमानजी, सुग्रीव, गवय, गवाक्ष, नील- महानील आदि ६६ करोड़ मुनिजन यहाँ से मुक्त हुये हैं । यह स्थान जंगल में बड़ा रमणीक है । चारों तरफ़ फैली हुई पर्वतमालाओं के बीच में मांगी और तुंगी पर्वत निराली शान से खड़े हुये हैं। पर्वत की चोटियाँ लिङ्गाकार दूर से दिखाई पड़ती हैं । उन लिङ्गाकार चोटियों के चारों तरफ गुफा मंदिर बने हुए हैं। तलैटी में दो प्राचीन मंदिर हैं। हाल में एक
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