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उपन
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और बर्माका क्षेत्र अच्छे चावलको उत्पन्न करने के लिये प्रसिद्ध है। सारांशतः यह स्पष्ट है कि वाह्य ऋतु आदि निमित्तों को पाकर क्षेत्रोंका प्रभाव विविध प्रकार और रूप धारण करता है। ___ संसार से विरक्त हुए महापुरुष प्रकृति के एकान्त और शान्त स्थानों में विचरते हैं । उच्च पर्वतमालाओं-मनोरम उपत्ययकाओं गंभीर गुफाओं और गहन बनों में जाकर साधुजन साधना में लीन होते हैं । जैनधर्म जीवमात्र को परमार्थ सिद्धि की साधना का उपदेश देता है, क्योंकि प्रत्येक जीव सुख चाहता है। सुख संसार के प्रलोभनोंमें नहीं है; वह आत्माका गुण है । जो मनुष्य सम्पत्ति की छाया को पकड़ रखनेका उद्योग करता है, उसे हताश होना पड़ता है। छायाका पीछा करनेसे वह हाथ नहीं आती। उसके प्रति उदासीन हो जाइये, वह स्वतः आपके पीछे-पीछे चलेगी। अतएव जो मनुष्य महान् बननेके इच्छुक हैं उन्हें त्याग-धर्मका ही अभ्यास करना कार्यकारी है। अर्थ और काम पुरुषार्थों की सफलता धर्म पुरुषार्थ पर ही निर्भर है इसलिये अन्य धर्म कार्यों के साथ तीर्थ वन्दना भी धर्माराधना में मुख्य कारण कहा गया है। क्योंकि तीर्थ वह विशेष स्थान है जहां पर किसी साधक ने साधना करके आत्मसिद्धि को प्राप्त किया है। वह स्वयं तारण-तरण हुआ है और उस क्षेत्र को भी अपनी भव-तारण शक्ति से संस्कारित कर गया है । धर्ममार्ग के महान् प्रयोग उस क्षेत्रमें किये जाते हैं-मुमुक्षुजीव
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