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जिनमें 'गुरु' और 'सिद्धान्तबस्ती' उल्लेखनीय है । सिद्धान्तबस्ती में 'षट्खंडागमसूत्रादि' सिद्धान्त ग्रंथ और हीरा - पन्ना आदि नव रत्नों की ३५ मूर्तियां विराजमान हैं । गुरुबस्ती में मूलनायक की प्रतिमा आठ गज ऊंची श्री पार्श्वनाथ भगवान् की है। पंचों की आज्ञा से और भण्डार में कुछ देने पर इन अद्भुत प्रतिमाओं के और सिद्धान्त ग्रथों के दर्शन होते हैं । अन्य मंदिरों में भी मनोज्ञ प्रतिमायें विराजमान हैं । सात मन्दिरों के सामने मानस्थम्भ बने हुये हैं । इन सब मन्दिरों का प्रबंध यहां के भट्टारक श्री ललितकीर्तजी के तत्वावधान में पंचों के सहयोग से होता है । शाम को रोशनी और आरती होती है। यहां पर श्री पं० लोकनाथ जी शास्त्री ने वीरवाणी विलास सिद्धान्त भवन में ताड़पत्रों पर लिखे हुये जैन शास्त्रों का अच्छा संग्रह किया है। यह स्थान बड़ा मनोहर है । राजाओं के महल भी भग्नावशेष हैं । यहां से १० मी दूर कार कल जाना चाहिये ।
कारकल अतिशय क्षेत्र
इस क्षेत्र का प्रबंध यहां के भट्टारकजी के हाथ में है । उन्हीं के मठ में ठहरने की व्यवस्था है । यहां १२ मन्दिर प्राचीन और मनोज्ञ लाखों रुपये की कीमत के बने हुए हैं। पूर्व की ओर एक छोटी-सी पहाड़ी पर एक फर्लाङ्ग ऊपर चढ़ने पर बाहुबलि स्वामी की विशालकाय प्रतिमा के दर्शन करके मन प्रसन्न होजाता है ।
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