________________
था। बाहुबलि की विजय हुई । परन्तु उन्होंने राज्य अपने बड़े भाई को दे दिया और स्वयं तप तप कर सिद्धपरमात्मा हुये । भरतजी ने पोदनपुर में उनकी बृहत्काय मूर्ति स्थापित की; परन्तु कालान्तर में उसके चहुँओर इतने कुक्कुट-सर्प होगये कि दर्शन करना दुर्लभ थे। गंगराजा राचमल्ल के सेनापति चामुंडराय अपनी माता की इच्छानुसार उसकी वंदना करने के लिये चले, परन्तु उनकी यात्रा अधरी रही। इसलिये उन्होंने श्रवणवेल्गोल में ही एक वैसी ही मूर्ति स्थापित करना निश्चित किया। उन्होंने चंद्रगिरि पर्वत पर खड़े होकर एक तीर मारा जो इन्द्रगिरि पहाड़ पर किसी चट्टान में जा लगा । इस चट्टान में उनको गोम्मटे. श्वरके दर्शन हुये । चामुंडरायजी ने श्री नेमिचंद्राचार्य की देखरेख में यह महान् मूर्ति सन् १८३ ई० के लगभग बनवाई थी। यह उत्तराभिमुखी है और हल्के भूरे रंग के महीन कणोंवाले कंकरीले पत्थर (Granite) को काटकर बनाई गई है। यह विशाल मूर्ति इतनी स्वच्छ और सजीव है कि मानों शिल्पी अभी-अभी ही उसे बनाकर हटा है। इस स्थानके अत्यन्तसुन्दर और मूर्ति के बड़ा होने के खयाल से गोम्मटेश्वर की यह महान् मूर्ति मिश्रदेश के रैमसेस राजाओं की मूर्तिओं से भी बढ़कर अद्भुत एवं आश्चर्यजनक सिद्ध होती है इतना महान् अखंडशिला-विग्रह संसार में अन्यत्र नहीं है । निस्सन्देह त्याग और वैराग्य मूर्ति के मुख पर सुन्दर नत्य कर रहा है- उसकी शान्तिमुद्रा भुवनमोहिनी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com