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मधुवन (सम्मेदशिखिर पर्वत)
मधुवन में तेरापंथी और बीसपंथी कोठियों के आधीन ठहरने के लिये कई धर्मशालायें हैं । दि० जैनमंदिर भी अनेक हैं, जिनकी रचना सुन्दर और दर्शनीय है । बाजार में सब प्रकार का जरूरी सामान मिलता है। पहले मधुवन को 'मधुरवनम्' कहते थे।
सम्मेदाचल वह महापवित्र तथा अत्यन्त प्राचीन सिद्धक्षेत्र है, जिसकी बन्दना करना प्रत्येक जैनी अपना अहोभाग्य समझता है । अनन्तानन्त मुनिगण यहाँ से मुक्त हुए हैं- अनन्त तीर्थङ्कर भगवान् अपनी अमृतवाणी और दिव्यदर्शन से इस तीर्थको पवित्र बनाचुके हैं । इस युगके ऋषभादि बीसतीर्थङ्कर भ० भी यहीं से मोक्ष पधारे थे । मधुकैटभ जैसे दुराचारी प्राणी भी यहाँ के पतित पावन वातावरण में आकर पवित्र होगये । यहीं से वे स्वर्ग सिधारे । निस्सन्देह इस तीर्थराज की महिमा अपार है। इन्द्रादिकदेव उसकी बंदना करके ही अपना जीवन सफल हुआ समझते हैं । क्षेत्र का प्रभाव इतना प्रबल है कि यदि कोई भव्य जीव इस तीर्थ की यात्रा वंदना भावसहित करे तो उसे पूरे पचास भव भी धारण नहीं करने पड़ते, बल्कि ४६ भवों में ही वह संसार भ्रमण से छूटकर मोक्ष लक्ष्मी का अधिकारी होता है। पं० द्यानतरायजी ने तो यहाँ तक कहा है कि:
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