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दो शब्द श्री दि. जैन तीर्थों का इतिहास अज्ञात है। प्रस्तुत पुस्तक भी उसकी पति नहीं करती। इसमें केवल तीर्थों का महत्व और उनका सामान्य परिचय कराया गया है; जिसके पढ़ने से तीर्थयात्रा का लाभ, सुविधा और महत्व स्पष्ट हो जाता है। तीर्थो का इतिहास लिखने के लिये पर्यात सामग्री अपेक्षित है । पहिले प्रत्येक तीर्थ विषयक साहित्योल्लख, ग्रंथप्रशस्तियां, शिलालेख, मूर्तिलेख, यंत्रलेख और जनश्रुतियां आदि एकत्रित करना आवश्यक हैं । इन साधनों का संग्रह होने पर ही तीर्थों का इतिहास लिखना सुगम होगा । प्रस्तुत पुस्तक में भी साधारणत: ऐतिहासिक उल्लेख किये हैं । संक्षेप में विद्यार्थी इसे पढ़ कर प्रत्येक तीर्थ का ज्ञान पालेगा और भक्त अपनी आत्मतुष्टि कर सकेगा । यह लिखी भी इसी दृष्टि से गई है। ____ भा. दि. जैन परिषद् परीक्षा बोर्ड के लिये तीर्थो विषयक एक पुस्तक की आवश्यकता थी। मेरे प्रिय मित्र मा० उग्रसेन जी ने, जो परिषद् परीक्षा बोर्ड के सुयोग्य मंत्री हैं, यह प्रेरणा की कि मैं इस पुस्तक को परिषद्-परीक्षा-कोर्स के लिये लिख दूं। उनकी प्रेरणा-का ही यह परिणाम है कि प्रस्तुत पुस्तक वर्तमान रूप में सन् १९४३ में लिखी जा कर प्रकाशित की गई थी। अत: इसके लिखे जाने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। ___यह हर्ष का विषय है कि जनसाधारण एवं छात्रवर्ग ने इस पुस्तक को उपयोगी पाया और इसका पहला संस्करण समाप्त हो गया : अब यह दूसरा संस्करण प्रगट किया जा रहा है ।
इसमें कई संशोधन और संवर्द्धन भी किये गये हैं । पाठक इसे और उपयोगी पायेंगे । कन्ट्रोल के कारण चित्र व नकशे नहीं दिये जा सके है, इसका खेद है। ___ अाशा है यह पुस्तक इच्छित उद्देश्य की पूर्ति करेगी। अलीगंज (एटा)
विनीतःश्रुतपंचमी २४७२
कामताप्रशाद जैन ।
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