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( १२६ ) सेठ जाहड के भाइयों ने कराई थी। उनके पूर्वजों ने वाणपुर में सहस्रकूट जिनालय भी स्थापित किया था, जो अब भी मौजूद है यहाँ और भी अगणित जिनप्रतिमायें बिखरी हुई मिलती हैं; जो इस तीर्थ के महत्वको स्थापित करती हैं। ___ श्री शान्तिनाथजी की मनोज्ञ मूर्ति के अतिरिक्त यहाँ पर ग्यारह फुट ऊंची खगासन प्रतिमा श्री कुन्थुनाथ भगवान की भी विद्यमान है । यहाँ प्रचुर प्रमाण में अनेक प्राचीन शिला लेख उपलब्ध हैं, जिन से जैन जाति का महत्व तथा प्राचीनता प्रकट है । प्राचीन जिन मन्दिरों की २५० मूर्तियाँ यहाँ उपलब्ध हैं । यहाँ विक्रम सं० १६६३ से श्री शान्तिनाथ दि० जैन विद्यालय मय बोर्डिङ्ग के चाल है। यह स्थान ललितपुर G. I P. स्टेशन से मोटर द्वारा ३६ मील टीकमगढ़ होकर अहारजी पहुँचना चाहिए तथा मऊरानीपुर स्टेशन से ४२ मील मोटर द्वारा टीकमगढ़ से आहारजी पहुँचना चाहिए।
श्री अतिशयक्षेत्र कुंडलपुर दमोह से क़रीब २० मील ईशानकोण में कुण्डलपुर अतिशयक्षेत्र है । वहाँ के पर्वत का आकार कुण्डलरूप है। इसी कारण इसका नाम कुण्डलपुर पड़ा अनुमान किया जाता है। यहाँ पर्वतपर
और तलैटी में कुल ५६ मन्दिर हैं। इन मंदिरों में मुख्य मंदिर श्री महावीर स्वामीका है, जिसमें उनकी ४-४|| गज ऊंची और प्राचीन प्रतिमा विराजमान है यह मंदिर प्रतिमाजी से बाद का
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