________________
( १०५ )
मंदिर दिल्ली के श्री सागरमल महावीरप्रसाद जी ने सं० १९७७ में बनवाया था । इस मंदिर में ही यहाँ पर सबसे प्राचीन खड्गासन प्रतिमा बिराजमान है; जिसपर कोई लेख पढ़ने में नहीं आता है वैसे श्री शांतिनाथ जी की सं० १६६५ की प्रतिमा प्राचीन है । सं० १९२० की नेमिनाथस्वामी की एक प्रतिमा गिरिनार जी की प्रतिष्ठा की हुई हैं; जिसने अनुमानित है कि उस वर्ष यहां जिन बिम्ब प्रतिष्ठा हुई थी । इस पहली टोंक परही विशाल मंदिर है । अन्य शिविरों पर यह विशेषता नहीं है ।
इस मंदिर - समूह के पासही राजुलजी की गुफा है वहां पर राजुलजी ने तप किया था । इसमें बैठकर घुसना पड़ता है । उस में राजुलजी की मूर्ति पाषाण में उकेरी हुई है और एक चरण पादुकायें हैं ।
।
यहाँ से दूसरी टोंकपर जाते हैं जो अम्बादेवी की टोंक कहलाती है। यहाँ पर अम्बादेवी का मंदिर है, जो मूलत: जैनियों का है। अब इसे हिन्दू और जैनी दोनों पूजते हैं । यहाँ पर चरणपादुकायें भी हैं। आगे तीसरी टोंक आती है जिसपर नेमिनाथस्वामी के चरणचिन्ह हैं । यहीं बाबा गोरखनाथ के चरण
और मठ हैं, जिन्हें जैन पूजते हैं। इस टोंक से लगभग चार हजार फीट नीचे उतरकर चौथी टोंक पर जाना होता है । इस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ नहीं है- बड़ी कठिन चढ़ाई है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com