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पदार्थों को कहते हैं । इसके स्कन्ध १ देश २ प्रदेश ३ और परमाणु ४ नाम से चार भेद हैं । प्रदेश और परमाणु में यह भेद है कि-जो निर्विभाग भाग, साथ में मिला रहे उसे प्रदेश मानते हैं और वही यदि जुदा हो तो परमाणु के नाम से व्यवहार में लाया जाता है।
(६) काल द्रव्य एक कल्पित पदार्थ है । जहां सूर्य तारादिगण चलस्वभाववाले हैं वहीं काल का व्यवहार है। काल दो प्रकारका है-एक उत्सर्पिणी, और दूसरा अवसर्पिणी । उत्सर्पिणी उसको कहते हैं जिसमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श ये चारो की क्रम २ से वृद्धि होती है और अवमर्पिणी काल में पूर्वोक्त पदार्थों का क्रम २ हास होता है । उत्सपिणी, अवसर्पिणी काल में भी हर एक के छः छः विभाग हैं; जिनको आरा कहते हैं । अर्थात् एक कालचक्र में छः उत्सर्पिणी के क्रम से आरा हैं और अवसर्पिणी के छः व्यु. त्क्रम से ( उलटे ) आरा हैं । इन्हीं दोनों कालों में चौवीस २ तीर्थकर होते हैं और जो उत्मर्पिणी में चौवीम तीर्थंकर होते हैं, वे मुक्तजीव फिर उलटकर किसी उन्मर्पिणी या
अवसर्पिणी में नहीं आने और हर एक उत्सर्पिणी अवमा पिणी में उनसे पृथक् २ नये जीव तीर्थंकर होते हैं; ऐमा काल का क्रम अनादि से चला आता है। __ जहां मूर्यतारादिगण निश्चल हैं, वहां काल का व्यवहार
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