SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक प्राचीन गुटका तिहुं पसाइ इहु रासु किया, दुहु-दुगति-निवारण । पढ़र्हि गुणहिं सुणि सद्दहहि, तिन्ह सिवसुहु करणु ॥ ३४ ॥" चौथी रचना “ग्यारह अनुप्रेक्षा है, इसके नमूने भी यों देखिये: "अवधू जाणिए होधू किछ देषिय नाहि, कि रुचि मानि पहो, विहुडई जो षिणमाहि । षिणमाहि जाहि विलास-मन्दिर, बंधुसुत-वित अति घणा । जल-रेह-देह-सनेहु तिय-दामिनि दमक जिउ जोवनां ॥ जिस हति जात न वार लागइ, बुलबला लि पेषिए । अवधू परिक्ष कहो जिअ सिउ-धून किछ जगि देषिए ॥१॥ भवि भवि भाविए हो रत्नत्रय-गुण-शानु । अप्पा माइए हो धम्म सुकल धरि ध्यानु ॥ मनि ध्यानु जिनवर होउ भवि । भवि गुरु दिगंव्वरु पाइए । सन्यास-मरना अप्प-सरणा सील सिउ लिव लाइए ॥ छंडहु सदा मनि-राग-दोसहुं, देउ जिणवरु झाइए । कवि कहि भगवती दास सिव-सुषु ऐहु भवि २ भाविए ।॥ १२॥" पांचवीं रचना "षीचडी रासा" है और वह इस प्रकार प्रारम्भ होता है: "पंच परम गुरु वंदिवि सारद नमणु केरि। पिचड़ी रासु पयामिनि सुणहु भाउ धरि ॥१॥ जिण विणु जपु नवि सोहहत पुन बिवं भविनां । तव विणु मुणि नवि सोहइ, पंकजु अम्भ विनां ॥२॥ समकित विणु वरतु न सोहइ, संजमु धम्म विनां । दया विण धम्म न सोहइ, उदिमु कर्म विनां ॥ ३ ॥ सकलचन्द भट्टारक उत्तम घिमांधरो। तासु पट्टि वयमंडिय मुणि मुणिचन्दवरो॥ तासु पसाए रासा पिचड़ी उत्तियऊ ।। होइ भूरि सुहु-संघह भणइ भगौतियऊ ॥ ४०॥" छठी रचना "अनन्तचतुर्दसी चौपाई" है और वह इस प्रकार है: "प्रथम नमो जिणवर आदीसु। बड्डमाण जिण न्याऊ सीसु ॥ पुणु पुपुयणविवि सारद माइ । गोरम गणहर लागौं पार ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy