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भास्कर
[भाग १
(३३) शक सं० ८५९ (978 A. D.) में पेग्गूर का शिलालेख लिखा गया। इसमें रकस ने, जो कि गंगवंशी राचमल्ल द्वितीय का छोटा भाई और वेड्डोरेगेरे (Beddoregare) का शासक (governor सूबादार) था, श्रवणबेलगोल के अनन्तवीर्य को, जो कि पण्डित गुणसेन भट्टारक का शिष्य था, एक दान दिया।
Ref. Ep. Car. I, Coorg Inscriptions (ed. 1914) no. 4. Rice, Mysore and Coorg from inscriptions, P. 47.
(३४) राष्ट्रकूटवंशी कृष्णराज तृतीय का पौत्र इन्द्रराज चतुर्थ, श्रवणबेलगोल में शक संवत् ९०४ (सोमवार के दिन २० मार्च) को मरा। Ref. Inscrip. at Sr. Bel. no. 57. p. 53. Ind. ant. XXIII. p. 124, no. 64.
(३५) वि० सं० १०५३ (997 A. D.) में रविवार (२४ जनवरी) के दिन हस्तिकंडिका का जैनमंदिर (जिसे राष्ट्रकूटवंशी विदग्धराज ने बनाया था) बहाल किया गया या मरम्मत की गयी (restored)। वासुदेव सूरि के शिष्य शान्तिभद्र सूरि ने वहाँ एक ऋषभदेव की मूर्ति स्थापित की। इस घटना की स्मृति में सूराचार्य ने एक प्रशस्ति रची।।
Ref. Ep. Ind. X, P. 17 f. (३६) 1000-1200. A. D. Prevalence of Jainism as the chief form of morship among the highest classes in central India.
Ref, Imp. Gazet. Ind. IX, p. 353. (३७) लघुसमंतभद्र, जिसने अष्टसहस्रो पर एक टीका लिखी है, ईस्वी सन १००० के लगभग की है। (श्वे०) अभयदेव सूरि का भी यही समय है । ___Ref Vidyabhooshan Indian Logic pp. 36-37. K. J. O. Tank's Dic. I, P. I. P. R., V pp. 216-19.
IITH CENTURY A. D. (३८) ईसवी सन् १००४ में, राजेन्द्रचोल के आधिपत्य में चोलों की विजयों द्वारा पश्चिमी गंगवंश के राज्य का पतन हुआ। इस राजकीय परिवर्तन से, जैनधर्म को मैसूर प्रांत में जो राजधर्म (s. r.) का स्थान प्राप्त था वह विरुद्धता में परिणत हो गया (adversely affec
ted)।
___Ref. Rice, Mysore and Coorg from Inscriptions, pp. 48, 203. (३९) वीरभद्र ने वि० सं० १०७८ में 'आराधना-पताका' बना कर समाप्त की।
Ref. I. G. 64. (४०) मथुरा से प्राप्त हुई एक जैनमूति पर वि० सं० १०८० का लेख है।
Ref., Ep. Ind, II; p. 211
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