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- शील है उत्थान व पतन का चक्र घूमता रहता है। मुगलों के अत्याचार से इन प्रतिमाँश्रों में से अधिकांश काफी प्रतिमाएं खेतों में गाड दी गई और जिनका अभी तक कोई पता नहीं मिल सका। अब मन्दिर में सिर्फ ४ प्रतिमाएं रह गई हैं। एक मूल नायक श्री धर्मनाथ प्रभु, एक सर्व धातु की वो दूसरी मंजिल पर भगवान श्री पार्श्वनाथ की, चौथी प्रतिमा एक खेत में मिली जो गत महा सुद६ सं० २०१३ के उत्सव के दिन अभिषेक करवा कर मेहमान रूप में विराजमान कर दी गई हैं। इस मन्दिर का समय २ पर जीर्णोद्धार होना पुरानी ख्यातों से पाया जाता है जैसे कि:
१ - विक्रम की नौवीं शताब्दी में उपकेशपुर के श्रेष्ठ बोसट ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था ।
२ - विक्रम की बारहवीं शताब्दी में नागपुर के भूरंटों ने इस मन्दिर का स्मरण काम करवा कर पुण्य उपार्जन किया था ।
३ - विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में ओसियां के आदित्य गान गोत्रीय शाह मारंग सोनपाल ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करा कर इसकी स्थिति बढ़ाई थी ।
४ - विक्रम की सोलहवीं शताब्दी के अन्त में बीकानेर के लोग यहां बगत में आए थे उस समय इस मन्दिर की जीर्ण हालत देख कर
इसका जीर्णोद्धार कराया ।
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