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* श्री गांगांणीमंडन *
पद्मप्रभ एवं पार्श्वनाथ स्तवन ( रचियता विवर समय सुन्दर गणि वि० सं० १६६२)
॥ ढाल पहिली ॥ पाय प्रणमु रे श्री पद्मप्रभ पासना ।
गुण गांऊ रे आणि मन शुद्ध भावना । गाँगांणी रे प्रतिमा प्रगट थई घणी।
__ तस उत्पत्ति रे मुणतो भषिक सुहामणी ।
'मुहामणि ये बात सुणतो कुमति शंका भाज से। निर्मलो धाशे शुद्ध समकित, श्री जिन शासन गाज मे ॥१॥ ध्रुब देश मंडावर महाबल बलि शूर राजा मोहए। तिहां गांव एक अनेक पाणिका, गाँगाणी मन मोहए ॥२॥
-यह वही गांगांणी है जिसके विषय में हम यह हिस्ट्री लिख रहे हैं। २ -कविवर के समय कुमति लोग कहा करते थे कि मन्दिर मूर्तियां बारह
वर्षीय दुष्काल में बनी है उन मोगों की शंका इन प्राचीन मूर्तियों से दूर हो सकती है । क्योकि ये मूर्तियाँ बारह वर्षीय दुष्काल के ४०० वर्ष पूर्व बनी है।
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