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________________ महाप्रभाविक जैनाचाय १५ membe/I-RDOID INSTIHID THISROID HISTIN HIDI AND Culty :ms FOR ANDROIN KI LADKIDN05Ind Hignuplosonuuto-DIL HIOID का एक प्रसंग है कि सं० १८७१ में जोधपुर के परम श्रीनरसीदासजी महाराज से आकोला में आपने दीक्षा मेधावी सम्राट मानसिंहजी के यह प्रश्न पूछने पर कि ग्रहण की और संवत् १६६७ में उंटाला ग्राम में "जल की वूद में असंख्य जीव किस प्रकार रह सकते आपका स्वर्गवास हुआ। आपके ६ अग्रगण्य विद्वान् हैं ?" उत्तर में प्राचार्य श्री ने एक चने की दाल शिष्य थे जिनमें पूज्य श्री मोतीलालजी महाराज जितने स्वल्प स्थान में एक सौ आठ हस्ति अङ्कित अग्रगण्य थे। गुरुभाई श्रीमांगीलालजी महाराज का किये जिन्हें सम्राट ने सूक्ष्मदर्शक शीशा की सहायता जन्म 'राजाजी का करेड़ा में हुआ था। ग्यारह वर्ष से देखा और प्रसन्नता प्रकट करते हुए जैन मुनियों की अवस्था में ही आपने दीक्षा ग्रहण की थी। आप के प्रशंसा रूप निम्न कवित्त रचा- परम निष्ठाशाली चारित्रवान मुनिराज हैं । काहू की न आश राखे, काहू से न दीन भाखे, प्राचार्य श्री भग्गुमलजी महाराज करत प्रणाम ताको, राजा राण जबड़ा। आचार्य श्री भग्गुमलजी महाराज का जन्म चन्द्र सीधी सी थारोगे रोटी, बैठा बात करें मोटी, ___ जी का गुड़ा नामक ग्राम में हुआ था। आप पल्लीओढने को देखो जांके,धोला सा पछेवड़ा। वाल थे। छोटी-सी वय में आपने दीक्षा ग्रहण की। खमा खमा करे लोक, कदियन राखे शोक आपकी माता और बहन ने भी दीक्षा ग्रहण की थी। बाजे न मृदंग चंग, जन माहिं जे बड़ा। प्राचार्य महाराज अंग्रेजी, फारसी और अरबी भाषा कहे राजा मानसिंह, दिल में विचार देखो, के भी विद्वान् थे । गणित, ज्योतिष और योगशास्त्र दुःखी तो सकल जन, सुखी जैन सेवड़ा ॥ आदि अनेक विषयों के बहुत विद्वान होने के कारण आप उस समय के प्रसिद्ध कवि थे, मापने अलवर-नरेश महाराजा मगलसिंह जी ने आपको राजस्थानी भाषा में सर्वजनोपयोगी अनेक प्रन्यों का राज्य पंडित' की उपाधि से विभूषित किया था। निर्माण किया। 'चन्द्रकला' नामक ग्रन्थ जो चार आपकी काव्य-शैली प्रासाद गुण संयुक्त थी। खण्डों में विभक्त है, एक सौ ग्यारह ढ़ाल में हैं। 'शान्तिप्रकाश' जैसे गूढ ग्रन्थों का निर्माण प्रापकी और सुरप्रिय स दाल में है। आपका स्वर्गवास उत्कृष्ट विद्वता का ज्वलन्त उदाहरण है। सं० १८८२ में हुआ। पूज्य श्री एकलिंगदोसजी महाराज काव श्री नन्दलालजी महाराज पून्य श्री धर्मदासजी महाराज के ग्यारहवें पाट पूज्य श्री रतिरामजी महाराज के शिष्य कविराज पर पूज्य श्री एकलिंगदासजी महाराज आचार्यपद पर श्री नन्दलालजी महाराज साधुमार्गी समाज में एक विराजमान हुए। श्राप मेवाड़ में परम त्यागी और बहुश्रु त विद्वान थे। आपका जन्म काश्मीरी ब्राह्मण तपस्वी मुनिराज थे। आपके पिता का नाम शिवलाल परिवार में हुआ था। दीक्षा लेने के थोड़े समय के जी था जो संगेसरा के निवासी थे। संवत् १९१७ में बाद आप शास्त्रों के पारगामी विद्वान हो गये । आपने आपका जन्म हुआ। तीस वर्ष की युवावस्था में पूज्य 'लब्धिप्रकाश,' गौतम पृच्छा' रामायण' 'अगदपस' Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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