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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास INDIGONINDOO Muni Atmaramji. He is one of the Noble band sworn From the day of initation for the high mission they have undertaken. He is the high priest of the Jain Community and is recognised as the highest living outhority on Jain religion and literature by oriental scholars. ८२ (The world parliament of religions chikago in Amerika-page 21) आत्म स्मारक:--- गुरूदेव के स्वर्गवास स्थान गुजरांवाला (पाकिस्तान) में भव्य समाधि मन्दिर बना हुआ है। जिस की यात्रार्थ प्रतिवर्ष भारत से जैन लोग जाते हैं । उनक े जन्म स्थान लहरा (जीरा) पंजाब में ४३ फीट ऊँचा भव्य कीर्ति स्तम्भ 'आत्मघाम' के नाम से सं० २०१४ में साध्वी मृगावती श्री क े उपदेश एवं प्रयत्नों से बनाया गया है। जहां प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला १ को भारी मेला लगता है । इनके अतिरिक्त अनेक स्थानों पर आप श्री जी प्रतिमाएँ बिराजमान हैं । पंजाब में शायद ही ऐसा कोई स्थान होगा जहां आचार्य देव के नाम से एक न एक संस्था न हो । कई स्थानों पर आत्मानन्द जैन कॉलेज हाई स्कूल एवं पाठशालाएं तथा पुस्तकालय हैं । यदि यह भी कह दिया जाय तो अनुपयुक्त न होगा कि प्रायः सम्पूर्ण पंजाब का श्वेताम्बर जैन समाज आपका ही भक्त है और प्राय: सर्वत्र जैन समाज के संगठनों का नाम 'श्री आत्मानन्द जैन सभा' के नाम से है। इससे इष्ट समझा जा सकता है - पंजाब आपका कितना श्रद्धालु भक्त है । केवल पंजाब की ही ऐसी अवस्था हो ऐसी बात नहीं है । समस्त भारत की न केवल श्व ेताम्बर जैन समाज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat fes दिगम्बर तथा श्वताम्बर आदि समस्त जैन समाज आपके प्रति अद्यावधि अपार श्रद्धा रखता है । इस श्रद्धा का मुख्य कारण एक यह भी है कि आपने जीवन पर्यन्त अपना लक्ष्य निःसम्प्र दाय भाव से, जैन धर्म का प्रचार, जैन साहित्य के प्रकाशन तथा स्थान २ पर शिक्षण शालाएं खोलने की ओर ही विशेष ध्यान रक्खा। राजस्थान मारवाड़ में भी कई शिक्षण संस्थाएं आप श्री के उपदेशों का शुभ फल है । श्राचार्य विजय नेमि सूरीश्वरजी आपका जन्म माहुआ (मधुमती नगरी) में सं० १६२६ की कार्तिक सुदी १ को सेठ लक्ष्मीचन्द भाई के गृह में हुआ । संवत् १६४५ की जेठ सुदी ७ को आपने गुरु वृद्धिचन्दजी महाराज से दीक्षा गृहण की। संवत् १६६० की कार्तिक वदी ७ को आपको “गणीपद" एवं मगसर सुदि ३ को आपको "पन्यास पद" प्राप्त हुआ । इसी प्रकार संवत् १६६४ की जेठ सुदी ५ के दिन भावनगर में आप "आचार्य" पद से विभूषित किये गये । आपने जैसलमेर, गिरनार, आबू सिद्धक्षेत्र आदि के संघ निकलवाये, कापरडा आदि कई जैन तीर्थों के जीर्णोद्धार में आपका बहुत भाग रहा है । आपने कई तीर्थों एवं मन्दिरों की प्रतिष्ठाएं करवाई । आप न्याय, व्याकरण एवं धर्मशास्त्र के प्रखर ज्ञाता थे । आपने श्रहमदाबाद में 'जैन सहायक फंड' की स्थापना करवाई । आप ही के पुनीत प्रयास से अ० भा० श्वेताम्बर मूर्तिपूजक साधु सम्मेलन का अधिवेशन अहमदाबाद में सफल हुआ। आप धर्मशास्त्र, न्याय व व्याकरण के उच्च www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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